BA Semester-3 Defence and Strategic Studies - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2648
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बीए सेमेस्टर-3 रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन

प्रश्न- शक्ति सन्तुलन के विभिन्न रूपों तथा उद्देश्यों का वर्णन करते हुए इसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

परिचय - आधुनिक युग में विचारों ने शक्ति सन्तुलन को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का आधारभूत सिद्धान्त ( A Basic Principle of International Relations) राजनीति का यथासम्भव मूलभूत नियम ( A Nearly Fundamental Law of Politics as it is possible to find ) तथा सामान्य सामाजिक सिद्धान्त की अभिव्यक्ति (Manifestation of General Social principle) आदि की संज्ञा दी है क्योंकि शक्ति सन्तुलन की सहायता से ही विश्व की राजनीतिक घटनाओं और राजनीतिज्ञों की व्यवहारिक नीतियों का विवेचन किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त का अत्यधिक महत्व है। यदि यह कहा जाये कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अनिवार्य रूप से शक्ति संघर्ष ही है तो गलत न होगा। इसीलिए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति सन्तुलन को इस तरह से राजनीति में शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त का यह अर्थ होता है कि विभिन्न राष्ट्रों की शक्तियों को इस तरह से सन्तुलित किया जाये कि कोई भी एक राष्ट्र इतनी अधिक शक्ति न प्राप्त कर लें कि वह दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करके अधिकार करने में सफल हो जाये।

परिभाषाएँ (Definitions) - शक्ति सन्तुलन की कोई एक परिभाषा नहीं है। इसकी परिभाषा अनेक रूपों में अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने विचारों से परिभाषित की है। क्विसी राईट ने सिर्फ सन्तुलन को परिभाषित करते हुए कहा है कि "सन्तुलन किसी एक सत्ता या सत्ताओं के समूह पर या उनके भीतर कार्य कर रहे बलों का स्थायित्व दिखाई देता।' शक्ति- सन्तुलन की परिभाषा को समझने के लिए विभिन्न रूपों का अध्ययन आवश्यक है -

1. शक्ति सन्तुलन एक नीति के रूप में (Balance of Power as a policy) - शक्ति सन्तुलन का प्रयोग ऐसी नीति के रूप में भी किया जा सकता है जो तुल्यभारिता (Equilibrium) का निर्माण एवं रक्षा का कार्य करती है। संभवत: इसीलिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने शक्ति सन्तुलन को ब्रिटिश विदेश नीति की अद्भुत अचेतनी परम्परा बताया है। इससे स्पष्ट होता है कि वह शक्ति सन्तुलन को एक नीति (As a Policy) के रूप में मानते हैं।

2. शक्ति सन्तुलन तुल्यभारितातुल्यभारिता (Equilibrium)और वैषम्यावस्था (Disequilibrium) - के रूप में कुछ विद्वानों में शक्ति सन्तुलन का आधार तुल्यभारिता अर्थात साम्यवस्था के विचार को बनाया है। प्रोफेसर के. के शब्दों में "शक्ति सन्तुलन का अर्थ है राष्ट्रों के परिवारों के सदस्यों की शक्ति न्यायपूर्ण (Equilibrium) जो किसी राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों पर अपनी इच्छा लादने से रोक सके।"

कैसलरे ने भी शक्ति सन्तुलन को परिभाषित करते हुए कहा है कि - "राष्ट्र परिवार के सदस्यों के बीच ऐसी उचित साम्यावस्था (Equilibrium) बनाये रखना है जिससे उनमें कोई भी इतना ताकतवर न हो सके कि वह अपनी इच्छा दूसरों पर लाद सके। जबकि दूसरी ओर स्पाइकमैन के मतानुसार "सच्चाई यह है कि प्रत्येक राष्ट्र केवल उसी शक्ति सन्तुलन में खींच लेता है जो उसके हित में होता है।"

3. शक्ति सन्तुलन अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के रूप में (As a International Relation) - शक्ति सन्तुलन को अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के रूप में कई विद्वानों ने परिभाषित किया - है। सर्वप्रथम आई. एल. क्लॉर्ड ने शक्ति सन्तुलन को अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शक्ति सम्बन्ध की समस्या से सम्बन्धित माना है। वे कहते हैं कि, "शक्ति सन्तुलन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें विभिन्न स्वतंत्र राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना किसी बड़े शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतंत्रतापूर्वक संचालित करते हैं। इस प्रकार यह एक विकेन्द्रित व्यवस्था ( Decentralized System) है जिसमें शक्ति नीति-निर्णायक इकाइयों के हाथों में ही रहती है।' एमरिक वाटल के शब्दों में- "अंतर्राष्ट्रीय विषयों के संदर्भ में शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय विषयों का निर्माण किया जाये कि कोई भी राष्ट्र इतना शक्तिशाली न बन पाये कि वह दूसरे राज्यों पर पूर्ण प्रभुत्व की स्थापना कर सके।'

4. शक्ति सन्तुलन एक निकाय के रूप में (Balance of Power As a System) - कभी-कभी शक्ति सन्तुलन को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के एक निकाय अर्थात् System के रूप में भी देखा जाता है। इसीलिए कुछ लेखकों जैसे ए. जे. पी. टेलर तथा मार्टिन वाइट आदि ने शक्ति सन्तुलन को एक निकाय के रूप में परिभाषित किया है।

उपर्युक्त रूपों के अतिरिक्त भी शक्ति सन्तुलन को अन्य रूपों में परिभाषित किया गया है। जैसे अस्तित्व के प्रतिमान के रूप में, प्रतीक के रूप में परम्परागत एवं शास्त्रीय अर्थ के रूप में आदि। शक्ति सन्तुलन के अनेकों रूप भिन्न-भिन्न होने के साथ ही कभी -कभी एक-दूसरे के विरोधी भी हो जाते हैं। इन विभिन्न परिभाषाओं और अर्थों का अध्ययन करने के बाद डाइके (Dyke) ने ठीक ही कहा है कि "हम सन्तुलन शब्द का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि जैसे सभी इस बात को जानते हों कि इसका अर्थ क्या है? किन्तु वास्तविकता यह है कि कोई भी नहीं जानता कि इसका अर्थ क्या है?

यदि हम शक्ति और सन्तुलन दोनों को अलग-अलग परिभाषित करके देखें तो शक्ति- सन्तुलन का अर्थ स्वतः ही समझ में आ जायेगा। शक्ति दूसरों को नियंत्रित करने तथा उनसे अपना मनचाहा व्यवहार कराने और उन्हें मनचाहा कार्य करने से रोकने के सामर्थ्य को कहते हैं और सन्तुलन (Balance) किसी एक सत्ता या सत्ताओं के समूह या उनके भीतर कार्य कर रहे बलों का वह आपसी सम्बन्ध है, जिसमें समष्टि में कुछ मात्रा में एक प्रकार का स्थायित्व दिखायी देता है। मार्गेनथाऊ शक्ति सन्तुलन को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि "शक्ति सन्तुलन एक देश के उन प्रयत्नों को कहते हैं जिनमें वह दूसरे देश से यदि अधिक नहीं तो कम से कम बराबर तो हो जाये।"

शक्ति सन्तुलन के रूप (Forms of the Balance of Power) - शक्ति सन्तुलन के निम्नलिखित तीन रूप हैं -

1. सरल शक्ति सन्तुलन (Simple Balance of Power) - शक्ति का केन्द्रीकरण दो राज्यों या दो विरोधी गुटों में हो तो यह सरल शक्ति सन्तुलन कहलायेगा। प्रायः यह सन्तुलन बराबर शक्ति वाले दो राष्ट्रों या राष्ट्र समूहों के मध्य होता है जैसाकि पूर्व सोवियत संघ तथा पश्चिमी शक्तियों के मध्य रहा है। इसीलिए श्लीचर ने लिखा है कि- "शक्ति सन्तुलन व्यक्तियों द्वारा समुदायों की सापेक्ष शक्ति की ओर इंगित करता है।"

2. बहुमुखी शक्ति सन्तुलन (Multi Balance of Power) - इसमें अनेक राष्ट्र या राष्ट्र समूह एक-दूसरे की शक्तियों को सन्तुलित करते हैं और फिर सन्तुलनों के भीतर भी सन्तुलन होता है, जिनसे गुटों के भीतर उत्पन्न छोटे-मोटे विवादों में एक प्रमुख गुट के सदस्य राज्य दूसरे प्रमुख गुट के सदस्य राज्यों को सन्तुलित करते हैं।

3. जटिल शक्ति सन्तुलन (Complex Balance of Power) - जब शक्ति का वितरण दो राष्ट्रों में होता है तो वह जटिल शक्ति सन्तुलन कहलाता है। इसे एक से अधिक राष्ट्रों में स्थापित करने के लिए सन्तुलनकर्ता में एकता हो भी सकती है और नहीं भी। इस शक्ति सन्तुलन को स्पष्ट करते हुए पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री Planmer Stonse ने कहा था कि "The balance has neither permanent friends nor permanent enemeies it has only the permanent interest of maintaining the balance."

भौगोलिक आधार पर शक्ति सन्तुलन को निम्न भागों में बाँट सकते हैं.

1. क्षेत्रीय सन्तुलन - उदाहरणार्थ भारत और पाकिस्तान में।
2. महाद्वीपीय सन्तुलन उदाहरणार्थ यूरोप और एशिया में।
3. विश्वव्यापीय सन्तुलन जब विश्व के सभी राष्ट्र विभिन्न प्रकार के समझौते में संलग्न हो जायें तो विश्वव्यापीय सन्तुलन बनता है।

शक्ति सन्तुलन के उद्देश्य
(Aims of Balance of Power)

शक्ति सन्तुलन के प्रायः दो प्रमुख उद्देश्य हो सकते हैं जो निम्नलिखित हैं-

(i) शान्ति की स्थापना में शक्ति सन्तुलन की नीति सहायक सिद्ध होती है।
(ii) प्रभुता सम्पन्न राज्यों के अन्तर्गत स्थिरता बनाये रखने में शक्ति सन्तुलन सहायता प्रदान करता है, अर्थात वह राज्यों की स्वतंत्रता की गारंटी लेता है।

शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त (Principle of Balance of Power) - शक्ति सन्तुलन की स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के समीक्षकों ने निम्नलिखित सिद्धान्त या तरीके बताये हैं -

1. अस्त्र-शस्त्रों का भण्डार बनाना - किसी भी राष्ट्र की श्रेष्ठता के लिए यह सर्वोत्तम तरीका है क्योंकि युद्ध ही राष्ट्र के भाग्य का अन्तिम निर्णायक होता है। इसलिए आयुधों का भण्डार बनाना अतिआवश्यक है। जब कोई राष्ट्र अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाता है तो दूसरे राष्ट्र भी अपनी-अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारम्भ कर देते हैं और सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए आयुधों के भण्डार में वृद्धि करना अति आवश्यक है। पाकिस्तान और भारत के मध्य इन दिनों शस्त्रास्त्रों की प्रतिस्पर्द्धा चरम सीमा पर है और दोनों ही राष्ट्र एक-दूसरे से अधिक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनना चाहते हैं। हालांकि भारत की सैन्य शक्ति पाकिस्तान से कई गुना अधिक है इसलिए पाकिस्तान लगातार आयुधों के भण्डार में वृद्धि करता जा रहा है।

2. मैत्री सन्धियों की स्थापना - शक्ति सन्तुलन की स्थापना के लिए यह साधन सर्वाधिक उपयुक्त है और अधिकता इसी साधन के द्वारा शक्ति सन्तुलन की स्थापना की जाती है। जब कोई राष्ट्र अपनी बढ़ी हुई शक्ति के द्वारा किसी दूसरे राष्ट्र को आक्रमण की धमकी देता है या जब अधिक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के द्वारा दूसरे राष्ट्रों को खतरा रहता है तो ऐसे समय में कई राष्ट्र आपस में सन्धियाँ करके उस राष्ट्र की बढ़ी हुई शक्ति का सामना करते हैं। यह सन्धियाँ आक्रमण की दृष्टि से तथा रक्षात्मक दृष्टि से दोनों ही रूप में की जाती हैं और इस तरह भी शक्ति सन्तुलन स्थापना होती है। डॉ. महेन्द्र कुमार के अनुसार "शक्ति सन्तुलन निकाय तभी अच्छी तरह कार्य सम्पन्न कर सकता है जब राष्ट्रों की संख्या बड़ी हो, जिससे राष्ट्रों को स्वयं अपने मित्रों का चुनाव करने की छूट हो।'

3. शक्ति वितरण - इस सिद्धान्त के अनुसार अपने विरोधी राष्ट्र के मित्र राष्ट्रों को उससे पृथक करके शक्ति वितरण का तरीका अपनाया जाता है। इस नीति से विरोधी राष्ट्र के मित्रों को या तो तटस्थ रहने के लिए बाध्य किया जाता है या फिर अपना मित्र बना लिया जाता है। शक्ति सन्तुलन के इसी सिद्धान्त का अनुसरण करके ब्रिटेन ने बहुत सी सफलतायें प्राप्त की हैं और आज रूस भी इसी सिद्धान्त के अनुसार अमेरिकी मित्र मण्डली से ब्रिटेन और फ्रांस को अलग करना चाहता है।

4. अधिक क्षेत्र पर प्रभुत्व स्थापित करना - शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए जब इस तरीके का उपयोग किया जाता है तो एक राष्ट्र अपनी शक्ति बढ़ा लेता है बशर्ते दूसरा पक्ष का राष्ट्र उसी समय अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास न कर रहा हो। कभी-कभी बड़े राष्ट्रों को अपने से छोटे राष्ट्रों में से अन्य प्रतिद्वन्द्वी राष्ट्रों को कुछ हिस्सा देना पड़ता है। पोलैण्ड का पहला विभाजन इसी कारण हुआ था। आस्ट्रिया ने रूस के साथ मिलकर पोलैण्ड के बंटवारे में अपना हिस्सा प्राप्त किया था।

5. तटस्थ मध्यवर्ती राज्यों का निर्माण - जब विश्व दो गुटों में बंट गया तो विश्व शान्ति का खतरा पैदा हो गया। इसलिए शक्ति को सन्तुलित करने के लिए किसी अवरोधक की आवश्यकता थी। फलतः तटस्थ मध्यवर्ती राष्ट्र का महत्व बढ़ा। उदाहरणार्थ- प्रथम विश्वयुद्ध में पूर्व जर्मनी और रूस के मध्य पोलैण्ड मध्यवर्ती राष्ट्र था। इसी प्रकार जर्मनी और फ्रांस के मध्य बेल्जियम और हॉलैण्ड तथा फ्रांस, जर्मनी, इटली के मध्य स्विट्जरलैण्ड मध्यवर्ती राष्ट्र था। इस प्रकार शक्ति सन्तुलन में तटस्थ राज्यों की स्थापना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

6. शस्त्रीकरण तथा निःशस्त्रीकरण - मार्गेनथाऊ के अनुसार "शक्ति सन्तुलन का एक ढंग यह है कि शक्तिशाली राष्ट्रों की शक्ति को कमजोर कर दिया जाये। ऐसा शस्त्रों की होड़ यानि शस्त्रीकरण या निःशस्त्रीकरण द्वारा ही सम्भव है। शस्त्रों के नये-नये रूपों का आविष्कार कर आक्रामक राज्यों के विरुद्ध सुरक्षा व्यवस्थाओं को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। सैन्य तैयारी तथा आधुनिकता आयुधों का प्रयोग करके विश्व में असन्तुलन पर अंकुश लगाया जा सकता है।

7. फूट डालो और शासन करो - इस सिद्धान्त के अनुसार एक देश ऐसी नीति अपनाता है जिससे शत्रु आपस में एकता न कर सके। उनमें आपसी फूट पैदा हो जाये और वे कमजोर बने रहें। फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध और पूर्व सोवियत संघ ने शेष यूरोप के विरुद्ध इस नीति को अपनाने का प्रयत्न किया था। इस उपाय के द्वारा किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र की शक्ति को घटाकर अपनी शक्ति से कम या बराबर किया जा सकता है जिससे शक्ति या सन्तुलन स्थापित हो जाता है। ब्रिटेन इसी नीति के प्रयोग के द्वारा ही सम्पूर्ण विश्व पर शासन कर चुका और आज भी प्रयत्नशील है।

8. हस्तक्षेप एवं युद्ध - हस्तक्षेप का तात्पर्य किसी राष्ट्र की विदेश नीति के अंतर्गत आने वाले कार्यों से होता है जिन्हें दूसरा राष्ट्र भी अपना कार्य मानता है। इसके द्वारा कोई भी राष्ट्र अपने से छोटे व कमजोर राष्ट्र के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करके वहाँ अपने अनुकूल सरकार बनाकर खोया हुआ साथी फिर से प्राप्त करने या कोई नया साथी बनाने का प्रयास करता है और यदि यह प्रयास सफल होता है तो उस राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। कुछ विद्वान हस्तक्षेप की नीति का अन्तिम चरण युद्ध ही मानते हैं, क्योंकि शक्ति सम्बन्धों में परिवर्तन पैदा करने के लिए अन्ततः युद्ध का सहारा लेना पड़ता है। द्वितीय युद्ध के बाद ब्रिटेन ने यूनान व जार्डेन में हस्तक्षेप किया, अमेरिका ने क्यूबा, लेबनान व लाओस में रूस ने हंगरी, उत्तरी कोरिया व पूर्वी यूरोप में यही किया। इस नीति का ताजा उदाहरण अफगानिस्तान तथा ईराक में अमेरिका का हस्तक्षेप तथा वहाँ अपनी पसन्द की सरकार की स्थापना है।

निष्कर्ष - निष्कर्ष के रूप में हम यह कह सकते हैं कि शक्ति सन्तुलन का सिद्धान्त जहाँ एक ओर निर्बल तथा कमजोर राष्ट्रों की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है तो वहीं दूसरी ओर यह सिद्धान्त विश्व को युद्धों तथा आक्रमण के संकट से मुक्त रखता है। अतः शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सुरक्षात्मक तत्व कहा जा सकता है। शक्ति सन्तुलन के सिद्धान्त के जन्म से अब तक यह विश्व शान्ति बनाये रखने में बहुत हद तक सफल रहा है और भविष्य में इसी सिद्धान्त के द्वारा विश्व शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखी जा सकती है। शक्ति सन्तुलन की स्थिति में युद्ध छिड़ने की सम्भावना भी प्रबल है जो तृतीय विश्वयुद्ध का रूप ले सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  2. प्रश्न- राष्ट्र राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  3. प्रश्न- राष्ट्र राज्य से आप क्या समझते हैं?
  4. प्रश्न- राष्ट्र और राज्य में क्या अन्तर है?
  5. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए तथा सुरक्षा के आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
  6. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित करते हुए सुरक्षा के निर्धारक तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। राष्ट्रीय हित में सुरक्षा क्यों आवश्यक है? विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कीजिए।
  9. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सामाजिक समरसता का क्या महत्व है?
  11. प्रश्न- भारत के प्रमुख असैन्य खतरे कौन से हैं?
  12. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति को उसके स्थल एवं जल सीमान्तों के सन्दर्भ में बताइये।
  13. प्रश्न- प्रतिरक्षा नीति तथा विदेश नीति में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  14. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा का विश्लेषणात्मक महत्व बताइये।
  15. प्रश्न- रक्षा नीति को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्वों के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- राष्ट्रीय रक्षा सुरक्षा नीति से आप क्या समझते है?
  17. प्रश्न- भारत की रक्षा नीति का वर्णन कीजिये।
  18. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित करते हुए शक्ति की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  19. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति की रूपरेखा बताइये।
  20. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति को परिभाषित कीजिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- राष्ट्र-राज्य की शक्ति रचना दृश्य पर एक लेख लिखिये।
  22. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों का परीक्षण कीजिये।
  23. प्रश्न- "एक राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन उसकी शक्ति निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व है।' इस कथन की व्याख्या भारत के सन्दर्भ में कीजिए।
  24. प्रश्न- "किसी देश की विदेश नीति उसकी आन्तरिक नीति का ही प्रसार है।' इस कथन के सन्दर्भ में भारत की विदेश नीति को समझाइये।
  25. प्रश्न- भारतीय विदेश नीति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  26. प्रश्न- कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  27. प्रश्न- कूटनीति का क्या अर्थ है? बताइये।
  28. प्रश्न- कूटनीति और विदेश नीति का सह-सम्बन्ध बताइये।
  29. प्रश्न- 'शक्ति की अवधारणा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति पर मार्गेनथाऊ के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिये।
  31. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति के आर्थिक तत्व का सैनिक दृष्टि से क्या महत्व है?
  32. प्रश्न- राष्ट्रीय शक्ति बढ़ाने में जनता का सहयोग अति आवश्यक है। समझाइये।
  33. प्रश्न- विदेश नीति को परिभाषित कीजिये तथा विदेश नीति रक्षा नीति के सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शीत युद्ध के बाद के अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण पर एक निबन्ध लिखिये।
  36. प्रश्न- संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  37. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये -(i) सुरक्षा परिषद् (Security Council), (ii) वारसा पैक्ट (Warsa Pact), (iii) उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), (iv) दक्षिण पूर्वी एशिया संधि संगठन (SEATO), (v) केन्द्रीय संधि संगठन (CENTO), (vi) आसियान (ASEAN)
  38. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा इनके लाभ पर प्रकाश डालिए?
  39. प्रश्न- क्या संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में शान्ति स्थापित करने में सफल हुआ है? समालोचना कीजिए।
  40. प्रश्न- सार्क पर एक निबन्ध लिखिए।
  41. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन के विभिन्न रूपों तथा उद्देश्यों का वर्णन करते हुए इसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित करते हुए उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन की अवधारणा की व्याख्या कीजिये।
  44. प्रश्न- 'क्षेत्रीय सन्धियों' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  45. प्रश्न- समूह 15 ( G-15) क्या है?
  46. प्रश्न- स्थाई (Permanent) तटस्थता तथा सद्भावनापूर्ण (Benevalent) तटस्थता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- नाटो (NATO) क्या है?
  48. प्रश्न- सीटो (SEATO) के उद्देश्य क्या हैं?
  49. प्रश्न- सार्क (SAARC) क्या है?
  50. प्रश्न- दक्षेस (SAARC) की उपयोगिता को संक्षेप में समझाइए।
  51. प्रश्न- “सामूहिक सुरक्षा शांति स्थापित करने का प्रयास है।" स्पष्ट कीजिये।
  52. प्रश्न- 'आसियान' क्या है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) तथा तटस्थता (Neutrality) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- शक्ति सन्तुलन को एक नीति के रूप में समझाइये।
  55. प्रश्न- सामूहिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र संघ पर एक टिप्पणी कीजिए।
  56. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण को परिभाषित कीजिये।
  57. प्रश्न- निःशस्त्रीकरण और आयुध नियंत्रण में क्या अन्तर है?
  58. प्रश्न- शस्त्र नियंत्रण और निःशस्त्रीकरण में क्या सम्बन्ध है?
  59. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आन्तरिक व बाह्य खतरों की व्याख्या कीजिये।
  60. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्तर्गत भारत को अपने पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान तथा चीन से सम्बन्धित खतरों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- 'चीन-पाकिस्तान धुरी एवं भारतीय सुरक्षा' पर एक निबन्ध लिखिए।
  62. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व एवं अर्थ की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गैर-सैन्य खतरों से आप क्या समझते हैं? उनसे किसी राष्ट्र को क्या खतरे हो सकते हैं?
  65. प्रश्न- देश की आन्तरिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? वर्तमान समय में भारतीय आन्तरिक सुरक्षा के लिए मुख्य खतरों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- भारत की आन्तरिक सुरक्षा हेतु चुनौतियाँ कौन-कौन सी है? वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- रक्षा की अवधारणा बताइए।
  68. प्रश्न- खतरे की धारणा से आप क्या समझते हैं? भारत की सुरक्षा के खतरों की समीक्षा कीजिए।
  69. प्रश्न- राष्ट्र की रक्षा योजना क्या है और इसकी सफलता कैसे निर्धारित होती है?
  70. प्रश्न- "एक सुदृढ़ सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिये।
  71. प्रश्न- भारत के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए विकसित प्रक्षेपास्त्रों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  72. प्रश्न- पाकिस्तान की आणविक नीति का भारत की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिये।
  73. प्रश्न- चीन के प्रक्षेपात्र कार्यक्रमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- चीन की परमाणु क्षमता के बारे में बताइए।
  75. प्रश्न- भारतीय मिसाइल कार्यक्रम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  76. प्रश्न- भारत की नाभिकीय नीति का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
  77. प्रश्न- भारत के लिये नाभिकीय शक्ति (Nuclear Powers ) की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त लेख लिखिये।
  78. प्रश्न- पाकिस्तान की परमाणु नीति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- पाकिस्तान की मिसाइल क्षमता की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- क्या हथियारों की होड़ ने विश्व को अशान्त बनाया है? इसकी समीक्षा कीजिए।
  81. प्रश्न- N. P. T. पर बड़ी शक्तियों के दोहरी नीति की व्याख्या कीजिए।
  82. प्रश्न- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि (CTBT) के सैद्धान्तिक रूप की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- MTCR से आप क्या समझते हैं?
  84. प्रश्न- राष्ट्रीय मिसाइल रक्षा (NMD) से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- परमाणु प्रसार निषेध संधि (N. P. T.) के अर्थ को समझाइए एवं इसका मूल उद्देश्य क्या है?
  86. प्रश्न- FMCT क्या है? इस पर भारत के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- शस्त्र व्यापार तथा शस्त्र सहायता में क्या सम्बन्ध है? बड़े राष्ट्रों की भूमिका क्या है? समझाइये |
  88. प्रश्न- छोटे शस्त्रों के प्रसार से आप क्या समझते हैं? इनके लाभ व हानि बताइये।
  89. प्रश्न- शस्त्र दौड़ से आप क्या समझते हैं?
  90. प्रश्न- शस्त्र सहायता तथा व्यापार कूटनीति से आप क्या समझते हैं?
  91. प्रश्न- शस्त्र व्यापार करने वाले मुख्य राष्ट्रों के नाम बताइये।
  92. प्रश्न- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये वाह्य व आन्तरिक चुनौतियाँ क्या हैं? उनसे निपटने के उपाय बताइये।
  93. प्रश्न- भारत की सुरक्षा चुनौती को ध्यान में रखते हुए विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति की समीक्षा कीजिए।
  94. प्रश्न- भारत में अनुसंधान तथा विकास कार्य (Research and Development) पर प्रकाश डालिए तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठनों का भी उल्लेख कीजिए।
  95. प्रश्न- "भारतीय सैन्य क्षमता को शक्तिशाली बनाने में रक्षा उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।' उपरोक्त सन्दर्भ में भारत के प्रमुख रक्षा उद्योगों के विकास का उल्लेख कीजिए।
  96. प्रश्न- नाभिकीय और अंतरिक्ष कार्यक्रम के विशेष सन्दर्भ में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर एक निबन्ध लिखिए।
  97. प्रश्न- "एक स्वस्थ्य सुरक्षा के लिए व्यापक वैज्ञानिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार की आवश्यकता है।" विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  99. प्रश्न- भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए

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